Biography of Jagadguru Rambhadracharya जगद्गुरु रामभद्राचार्य का जीवन परिचय
जगद्गुरु रामभद्राचार्य(Jagadguru Rambhadracharya) एक भारतीय हिंदू आध्यात्मिक नेता, विद्वान, कवि, लेखक, और दार्शनिक हैं:
उनका जन्म 14 जनवरी, 1950 को उत्तर प्रदेश के जौनपुर ज़िले के शांतिखुर्द गांव में हुआ था. उनका वास्तविक नाम गिरिधर मिश्र है.
दो महीने की उम्र में ही उनकी आंखों की रोशनी चली गई थी.
उन्होंने कभी ब्रेल या किसी अन्य सहायता का इस्तेमाल नहीं किया.
वे 22 भाषाएं बोल सकते हैं.
उन्होंने 240 से ज़्यादा किताबें और 50 से ज़्यादा शोधपत्र लिखे हैं.
वे रामानंद संप्रदाय के चार जगद्गुरु रामानन्दाचार्यों में से एक हैं.
वे चित्रकूट में स्थित तुलसी पीठ के संस्थापक और आजीवन कुलाधिपति हैं.
वे भारत सरकार से पद्म विभूषण से सम्मानित हो चुके हैं.
उन्हें तुलसीदास पर भारत के सबसे बड़े विशेषज्ञों में से एक माना जाता है.
वे रामचरितमानस के एक आलोचनात्मक संस्करण के संपादक हैं.
वे रामायण और भागवत के लिए कथा कलाकार हैं.
वे विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के नेता भी हैं.
मे जानेंगे उनकी आंखों की रोशनी किस उम्र में चली गई :-
जगदगुरू रामभद्राचार्य(Jagadguru Rambhadracharya) जी जब 2 महीने की ही हुए थे उसी उम्र में आंखों की रोशनी चली गई, उनकी आंखों में ट्रेकोमा नाम की बीमारी हुई थी 24 मार्च 1950 को पता चली और गांव में इलाज की अच्छी व्यवस्था ना होने के कारण उनकी आंखों का इलाज नहीं हो पाया |
उनके घर वाले श्री गिरिधर जी को लखनऊ के किंग जॉर्ज अस्पताल में भी ले गए थे जहां उनका 21 दिनों तक आंखों का इलाज चला, उनका काफी दिनों तक इलाज चला लेकिन उनकी आंखों की दृष्टि वापस नहीं लौटी | उस समय श्री गिरिधर जी 2 महीने के थे तभी से जगतगुरु रामभद्राचार्य(Rambhadracharya) अंधे हैं |
श्री गिरिधर आंखों से अंधे होने के कारण पढ़ लिख भी नहीं सकते थे और उन्होंने अपनी पढ़ाई के लिए ब्रेल लिपि का भी प्रयोग नहीं किया उन्होंने अपने जीवन में जो भी सीखा है सुनकर सीखा है और शास्त्रियों को निर्देश देकर रचना किया करते थे |
स्वामी रामभद्राचार्य(Rambhadracharya) के बचपन की दुर्घटना
यह बात है जून 1953 की, जब स्वामी रामभद्राचार्य(Rambhadracharya) के गांव में एक बाजीगर बंदरों के नृत्य का शो करने आया था और उसी शो को रामभद्राचार्य(Rambhadracharya) जी देखने गए थे एकदम वहां खड़े बालक सभी भागने लगे उनके साथ गिरधर भी भागने लगे और उसी समय गिरधर के साथ एक घटना हो गई कि वे एक सूखे कुएं में गिर गए वे काफी समय तक उस कुएं में फंसे रहे उसके बाद वहां से एक लड़की गुजर रही थी उसने गिरधर की आवाज सुनी फिर उसने देखा कि वह बालक फंसा हुआ है उसने उनकी मदद की और कुएं से बाहर निकाल लिया और इस प्रकार गिरधर की जान बच गई |
गिरधर ने अपनी शिक्षा का प्रारंभ उनके दादाजी से की थी क्योंकि उनके पिताजी तो मुंबई में काम करते थे उसके बाद उनके दादाजी ही उन्हें हिंदू महाकाव्य रामायण और महाभारत के कई प्रसंग और विश्राम सागर जैसी कई भक्ति रचनाएं सुनाएं करते थे और उसके बाद श्री गिरिधर ने मात्र 3 साल की उम्र में ही अपनी पहली कविता अवधी भाषा में लिखी | इस श्लोक मैं कृष्ण की यशोदा मां, कृष्ण को चोट पहुंचाने के लिए एक गोपी से झगड़ा कर रही हैं |
गीता और रामचरितमानस
श्री गिरिधर जब 5 साल के थे तभी उन्होंने अपने पड़ोसी पंडित मुरलीधर मिश्रा से, मात्र 15 दिनों में ही भगवत गीता को याद कर लिया जिसमें भगवत गीता के अध्याय और श्लोक संख्या के साथ कम से कम 700 श्लोक थे | जब गिरिधर मात्र 7 वर्ष के थे तभी उन्होंने अपनी दादा जी की मदद से 60 दिनों में ही तुलसीदास के पूरे रामचरितमानस को याद कर लिया था उसके बाद उन्होंने 1957 में रामनवमी के दिन उपवास करते हुए संपूर्ण महाकाव्य का पाठ किया था |
और 52 साल के बाद 30 नवंबर 2007 को दिल्ली में मूल संस्कृत पाठ और हिंदी टिप्पणी के साथ एक धर्म ग्रंथ का पहला ब्रेल संस्करण किया
जब गिरिधर मात्र 11 वर्ष के थे तब उनके घर परिवार के एक शादी समारोह में जा रहे थे लेकिन उस शादी समारोह में गिरधर को जाने से मना कर दिया इसका कारण तो यह मानते थे कि इनको ले जाना एक अपशगुन होगा उस समय कहीं भी उनकी उपस्थिति को अपशगुन मानते थे क्योंकि बचपन से अंधे हो गए थे |
जगद्गुरु रामभद्राचार्य(Jagadguru Rambhadracharya) की शिक्षा के बारे में
श्री गिरिधर ने 17 साल की उम्र तक किसी भी स्कूल में जाकर शिक्षा प्राप्त नहीं की, उन्होंने बचपन में ही रचनाएं सुनकर काफी कुछ सीख लिया था गिरधर के घर परिवार के चाहते थे कि गिरिधर एक कथावाचक बने उनके पिताजी ने गिरधर को पढ़ाने के लिए कई ऐसे स्कूल में भेजने को चाहा जहां अंधे बच्चों को पढ़ाया जाता है लेकिन उनकी मां ने नहीं जाने दिया उनकी मां का मानना था कि अंधे बच्चों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता |
उसके बाद गिरधर ने 7 जुलाई 1967 को हिंदी अंग्रेजी संस्कृत व्याकरण जैसे कई सब्जेक्ट को पढ़ने के लिए एक गौरीशंकर संस्कृत कॉलेज में प्रवेश ले लिया श्री गिरधर ने सीखने के लिए ब्रेल लिपि भाषा का प्रयोग नहीं किया उन्होंने अपने जीवन में जो भी सीखा है सिर्फ सुनकर ही सीखा है |
उसके कुछ दिनों के बाद उन्होंने भुजंगप्रयत छंद में संस्कृत का पहला श्लोक रचा | बाद में उन्होंने संपूर्णानंद संस्कृत विद्यालय में प्रवेश किया, उसके बाद 1974 में बैचलर ऑफ आर्ट्स परीक्षा में टॉप किया और फिर उसी संस्थान में मास्टर ऑफ आर्ट्स किया |
और 30 अप्रैल 1976 को विश्वविद्यालय में पढ़ाने के लिए श्री गिरिधर को आचार्य के रूप में घोषित किया गया, मास्टर डिग्री कंप्लीट होने के बाद | उसके बाद गिरधर ने अपना जीवन समाज सेवा और विकलांग लोगों की सेवा में समर्पित कर दिया, उसके बाद 9 मई 1997 से गिरधर को सभी लोग रामभद्राचार्य(Rambhadracharya) के नाम से जानने लगे थे |
श्री गिरिधर ने 19 मई 1983 को वैरागी दीक्षा ली इस समय गिरिधर, रामभद्रदास के नाम से जाने लगे थे उसके बाद 1987 में रामभद्र दास ने चित्रकूट में तुलसी पीठ नाम से सामाजिक सेवा और धार्मिक संस्थान की स्थापना की |
जगद्गुरु रामानंदाचार्य का पद कब मिला
24 जून 1988 मे रामभद्र दास को काशी विद्वत परिषद द्वारा तुलसी पीठ में जगद्गुरु रामानंदाचार्य के रूप चुना गया उसके बाद उनका अयोध्या में अभिषेक किया गया जिसके बाद उन्हें स्वामी रामभद्राचार्य(Rambhadracharya) के नाम से जानने लगे |
स्वामी रामभद्राचार्य(Rambhadracharya) ने अयोध्या मामले में गवाही दी
स्वामी रामभद्राचार्य(Rambhadracharya) ने अयोध्या में राम मंदिर होने की 437 प्रमाण कोर्ट को दिए हैं जगद्गुरु रामभद्राचार्य(Jagadguru Rambhadracharya) प्राचीन ग्रंथों का उल्लेख में बताया है कि बाल्मीकि रामायण के बाल खंड के आठवें श्लोक में श्री राम जन्म के बारे बताया है उसके बाद स्कंद पुराण में भी बताया गया है इसके अलावा पूर्व अथर्ववेद के दशम कांड के 31 वे द्वितीय मंत्र में स्पष्ट कहा गया है 8 चक्रों व नो प्रमुख द्वार बाली अयोध्या देवताओं की है उसी अयोध्या मे मंदिर है |
स्वामी रामभद्राचार्य(Rambhadracharya ने कहां है वेद में राम जन्म का स्पष्ट प्रमाण दिया गया है कहते हैं रामचरितमानस में स्पष्ट लिखा है की बाबर के सेनापति और दुष्ट लोगों ने राम जन्मभूमि के मंदिर को तोड़कर मस्जिद को बनाया है और कई हिंदुओं को मार डाला तुलसीदास ने इस पर अपना दुख भी प्रकट किया है लेकिन वहां पर मंदिर तोड़े जाने के बाद भी हिंदू राम की सेवा करते थे वही साधु-संत सोते थे और प्रतीक्षा करते थे कभी तो रामलला की कृपा होगी और एक ना एक दिन यहां पर मंदिर का निर्माण जरूर होगा |
स्वामी रामभद्राचार्य(Rambhadracharya) को भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक, 2015 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया | इसके अलावा स्वामी रामभद्राचार्य(Rambhadracharya) जी को कई नेताओं के द्वारा सम्मानित किया गया है जैसे कि इंदिरा गांधी डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम और भी कई राज सरकार के नेताओं के द्वारा सम्मानित किया गया है |
रामभद्राचार्य(Rambhadracharya) का आश्रम कहां है
स्वामी रामभद्राचार्य(Rambhadracharya) चित्रकूट में तुलसी पाठ नामक नामक धार्मिक स्थल और सामाजिक सेवा संस्थान के संस्थापक हैं जगद्गुरु रामभद्राचार्य(Rambhadracharya) चित्रकूट में रहते हैं |
Jagadguru Rambhadracharya: A Renowned Indian Spiritual Leader, Scholar, Poet, Writer, and Philosopher
Jagadguru Rambhadracharya is an Indian Hindu spiritual leader, scholar, poet, author, and philosopher. He was born on January 14, 1950, in the village of Shantikhurd, Jaunpur district, Uttar Pradesh. His birth name was Giridhar Mishra. At the age of two months, he lost his eyesight due to a condition called trachoma. Despite his blindness, he never used Braille or any other aids for the visually impaired. He is fluent in 22 languages, has authored over 240 books, and written more than 50 research papers.
Rambhadracharya is one of the four Jagadgurus of the Ramanandi Sampradaya and the founder and lifetime head of the Tulsi Peeth in Chitrakoot. He has been honored with the Padma Vibhushan, one of India’s highest civilian awards. He is regarded as one of the foremost experts on Tulsidas and is the editor of a critical edition of the Ramcharitmanas. He is also a storyteller of the Ramayana and Bhagavata and a prominent leader of the Vishva Hindu Parishad (VHP).
How Jagadguru Rambhadracharya Lost His Sight:
Jagadguru Rambhadracharya lost his eyesight when he was only two months old due to trachoma, a contagious eye disease. On March 24, 1950, it was diagnosed, but due to inadequate medical facilities in the village, his treatment was not possible. His family took him to King George Hospital in Lucknow, where he underwent 21 days of treatment, but his sight was never restored. Since then, he has been blind.
Because of his blindness, Giridhar was unable to read or write using Braille. He learned everything by listening, and he used to instruct scholars to compose works for him.
An Early Childhood Incident:
In June 1953, a performer with monkeys came to perform in Giridhar’s village, and young Giridhar went to watch the show. Suddenly, a group of children started running in fear, and Giridhar also ran with them. In the chaos, he fell into a dry well and remained trapped for a while. A passing girl heard his cries, saw him stuck, and helped rescue him. This incident saved his life.
Giridhar began his education under the guidance of his grandfather, as his father worked in Mumbai. His grandfather narrated to him Hindu epics like the Ramayana and Mahabharata and devotional texts like Vishram Sagar. At the age of three, Giridhar wrote his first poem in the Awadhi language. This poem depicted a scene where Yashoda (Krishna’s mother) argues with a gopi (milkmaid) for hurting Krishna.
The Gita and Ramcharitmanas:
When Giridhar was just five years old, he memorized the entire Bhagavad Gita in just 15 days, including all chapters and at least 700 verses. At the age of seven, he learned the entire Ramcharitmanas of Tulsidas in 60 days with the help of his grandfather. Later, on Ram Navami in 1957, he recited the entire epic while fasting. In 2007, on November 30, after 52 years, he published the first Braille edition of the Ramcharitmanas in both its original Sanskrit and Hindi commentary.
At the age of 11, Giridhar was not allowed to attend a family wedding because it was considered inauspicious to bring a blind person to such events, as blindness was believed to be an omen.
Education of Jagadguru Rambhadracharya:
Giridhar did not attend formal school until the age of 17. He learned a lot by listening to compositions and lectures. His family hoped that Giridhar would become a storyteller (Katha Vachak). His father had considered sending him to a school for blind children, but his mother opposed the idea, believing that blind children were not treated well in such schools.
In 1967, at the age of 17, Giridhar joined the Gaurishankar Sanskrit College to study subjects like Hindi, English, and Sanskrit grammar. Despite his blindness, he never used Braille; he learned everything by listening. He soon composed his first Sanskrit verse in Bhujang Prayat meter. Later, he enrolled at the Sampurnanand Sanskrit University, where he completed a Bachelor’s degree in Arts in 1974 and went on to earn a Master’s degree.
In 1976, he was appointed as a professor (Acharya) at the university. After completing his Master’s, Giridhar dedicated his life to social service and helping people with disabilities. In 1997, people started calling him Rambhadracharya.
Renunciation and Establishment of Tulsi Peeth:
On May 19, 1983, Giridhar took Vairagi initiation and was known as Rambhadradas. In 1987, he founded the Tulsi Peeth, a center for social service and religious activities, in Chitrakoot.
Appointment as Jagadguru Ramānandacharya:
On June 24, 1988, Rambhadradas was appointed as Jagadguru Ramānandacharya by the Kashi Vidvat Parishad. He was consecrated in Ayodhya, after which he became widely known as Swami Rambhadracharya.
Testifying in the Ayodhya Case:
Swami Rambhadracharya provided 437 pieces of evidence to the court supporting the claim that there had been a Ram temple in Ayodhya. He referenced ancient texts such as the Valmiki Ramayana, Skanda Purana, and the Atharvaveda, which mention the birth of Lord Ram and the presence of a temple at the site. He also spoke about the destruction of the temple by Babar’s forces, and the continuity of Hindu worship at the site despite the destruction of the original temple.
In recognition of his contributions, Swami Rambhadracharya was awarded the Padma Bhushan, India’s second-highest civilian honor, in 2015. He has also been honored by leaders like Indira Gandhi and Dr. A.P.J. Abdul Kalam.
The Ashram of Jagadguru Rambhadracharya:
Swami Rambhadracharya resides in Chitrakoot, where he founded the Tulsi Peeth, a center for religious and social service.