Location : Chhattisgarh पता : छतीसगढ़
Specialization : Shri Ram Katha, Bhagwat Katha, Shiva Katha, Devi Bhagwat Katha विशेषज्ञता : श्री राम कथा , भागवत कथा , शिव कथा, देवी भागवत कथा
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Acharya Sunil Krishna Tiwari Ji was born on 3 June 1985 in Kasdol, Chhattisgarh, which is famous as the holy land of Chitrotpala Ganga and the city of Raghuvanshi Yuvraj Luv Kush. He was born in an elite Brahmin family, in which his father was Pandit Shri Gorelal Tiwari and mother was Smt. Mongra Devi Ji. The entire region and India was blessed by the birth of Sunil Ji as he came to this world as a supernatural gem.
Since childhood, Sunil Krishna Tiwari’s mind was engrossed in religious events and the company of saints. He gave his first discourse on Ramcharit Manas at the age of only 7 years, which shows the depth of his religious inclination and knowledge. At the age of 19, when he was undergoing training in the state police service, he met Param Pujya Jagadguru Shankaracharya Swami Swaroopanand Saraswati Ji. This meeting gave a new direction to his life and since then he took a vow of religious service to protect Sanatan Dharma.
Acharya Sunil Krishna Tiwari is today renowned as a conscious and wise young national Bhagwat Katha Vachak. He not only narrates Bhagwat Katha but is also adept at singing bhajans in his simple and melodious style. There is a deep feeling of spirituality and devotion in his sermons and bhajans, which touches the hearts of the listeners and makes them aware and inspired towards religion.
Chhattisgarh State President
Sanatan Dharma Seva and Kalyan Sansthan Chhattisgarh Trust.
आचार्य सुनील कृष्ण तिवारी जी का जन्म 3 जून 1985 को छत्तीसगढ़ के कसडोल में हुआ था, जो चित्रोत्पला गंगा की पावन धरती और रघुवंशी युवराज लव कुश की नगरी के रूप में प्रसिद्ध है। वे एक कुलीन ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे, जिसमें उनके पिता पंडित श्री गोरेलाल तिवारी और माता श्रीमती मोंगरा देवी जी थीं। सुनील जी के जन्म से पूरा क्षेत्र और भारतवर्ष धन्य हो गया क्योंकि वे एक अलौकिक मणि के रूप में इस दुनिया में आए थे।
बचपन से ही सुनील कृष्ण तिवारी का मन धार्मिक आयोजनों और संतों के सानिध्य में रमा रहता था। उन्होंने केवल 7 वर्ष की आयु में रामचरित मानस पर अपना पहला प्रवचन दिया, जो उनके धार्मिक प्रवृत्ति और ज्ञान की गहराई को दर्शाता है। 19 वर्ष की आयु में, जब वे राज्य पुलिस सेवा में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे थे, तब उनका मिलन परमपूज्य जगदगुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी से हुआ। इस मिलन ने उनके जीवन को एक नया दिशा प्रदान किया और तभी से उन्होंने सनातन धर्म की रक्षा के लिए धर्म सेवा का प्रण लिया।
आचार्य सुनील कृष्ण तिवारी आज एक चेतनापुरुष और प्रज्ञावान युवा राष्ट्रीय भागवत कथा वाचक के रूप में प्रतिष्ठित हैं। वे न केवल भागवत कथा सुनाते हैं बल्कि अपनी सरस और सरल शैली के भजन गाने में भी निपुण हैं। उनके प्रवचनों और भजनों में आध्यात्मिकता और भक्ति की गहरी अनुभूति होती है, जो श्रोताओं के हृदय को छू जाती है और उन्हें धर्म के प्रति जागरूक और प्रेरित करती है।
छत्तीसगढ़ प्रदेश अध्यक्ष
सनातन धर्म सेवा एवम कल्याण संस्थान छत्तीसगढ़ ट्रस्ट।